milkha singh ki jivani in hindi | flying sikh

भारत के भूमि में एक से बढ़कर एक सपूतों को जन्म दिया है जिन्होंने ना सिर्फ अपनी एक अलग जगह बनाई बल्कि भारत का नाम भी दुनिया में रौशन किया उन्हीं में से एक नाम है मिल्खा सिंह (Milkha Singh) का

मिल्खा सिंह (Milkha Singh) ने रोम में 1960 और टोक्यो में 1964 में हुए ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था उन्हें Flying Sikh यानी उड़ते हुए सिख के नाम से भी जाना जाता है वो भारत के महान खिलाडियों में से एक हैं जिनपर ना सिर्फ खेल प्रेमियों को बल्कि सारे देश को गर्व है 

मिल्खा सिंह का जन्म एवं परिवार

देश उस वक़्त ग़ुलाम था मगर फिर भी हमारा देश एक था मतलब ये की भारत की सीमा के अंदर एक ही नक़्शे में भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश थे जो अब अलग-अलग तीन देश हैं उसी दरम्यान अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त के मुजफ्फरगढ़ ज़िले के गोविंदपुरा गांव में 17 अक्टूबर या 20 नवम्बर 1935 के दिन हुआ था इनके माता पिता की जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी

जब वो महज़ 12 साल के थे तब उनके सर से उनके माता पिता का साया उठ गया था भारत और पाकिस्तान के बटवारे के समय जो हिंसा भड़की थी उसी हिंसा में उनकी दंगाइयों ने हत्या कर दी थी मिल्खा सिंह (Milkha Singh) के 14 भाई बहन थे 

मिल्खा सिंह का बचपन

1947 में जब भारत पाकिस्तान का बटवारा हुआ तो बहुत खून खराबा हुआ था भारत में रहने वाले कुछ मुस्लिम पाकिस्तान जाना चाहते थे और पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू भारत आना चाहते थे हज़ारो की संख्या में लोगों की जाने गेन दोनों तरफ की हिंसाओं में इसी हिंसा का शिकार मिल्खा सिंह का परिवार भी हुआ जिसमें उनके माँ बाप को दंगाइयों ने मार दिया

किसी तरह बचते बचाते मिल्खा सिंह (Milkha Singh) भारत आने वाली ट्रैन में सवार होकर भारत आ गए यहाँ उन्होंने पुराण क़िला रिफ्यूजी कैंप में अपने वो भयानक दिन गुज़ारे उसके बाद वो सरकार द्वारा बनाई गई शाहदरा पुनर्वास कॉलोनी में रहने लगे

मिल्खा सिंह की निजी ज़िन्दगी

मिल्खा सिंह की जीवनी एक नज़र में
नाम मिल्खा सिंह
उप-नाम फ्लाइंग सिख
जन्म 17 या 20 नवम्बर 1935
जन्म स्थान अविभाजित भारत
पत्नी निर्मल कौर
संतान जिव मिल्खा सिंह
सेवाएं भारतीय सेना, एथलीट
निधन 18 जून 2021

साल 1962 में भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान निर्मल कौर से मिल्खा सिंह (Milkha Singh) की शादी हुई उनकी 3 बेटियां और 1 बेटा है साल 1999 में हुए पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध में शहीद हुए हवलदार विक्रम सिंह के 7 साल के बेटे को मिल्खा सिंह ने गोद लिया था उनका बेटा जीव मिल्खा सिंह एक अंतर्राष्ट्रीय गोल्फर हैं जोकि गोल्फ खेलों में एक जाना माना नाम है

मिल्खा सिंह और भारतीय सेना

मिल्खा सिंह ने जो कुछ देखा था अपनी आँखों से बचपन में वो उस सदमे से कभी नहीं उबार सके उन्होंने ने बचपन में ही अपने माँ बाप को खो दिया था कहीं ना कहीं उनके दिल में उन दंगाइयों के लिए नफरत थी वो किसी तरह उनसे बदला लेना चाहते थे

इस लिए वो भारतीय सेना में भर्ती होना चाहते थे उन्होंने कई बार प्रयास किया सेना में भर्ती होने का मगर वो हमशा असफल हो जाते मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हार नहीं मानी बहुत कोशिशों के बाद साल 1951 में वो सेना में भर्ती हो गए

मिल्खा सिंह का खिलाडी जीवन

मिल्खा सिंह जी अब भारतीय सेना में भर्ती हो चुके थे सेना में रहते हुए उनकी प्रतिभा को एक नै पहचान मिली उन्होंने अपने अंदर छुपे हुए एक धावक को पहचाना और अपने कौशल को बड़ीमेहनत करके निखारा सेना में हुए एक दौड़ में 400 सैनिको के साथ उन्होंने दौड़ लगाई और इस दौड़ में वो छटवें स्थान पर आये इस दौड़ के बाद सेना के अधिकारीयों ने उनकी प्रतिभा को देखा और सराहा जिसके बाद उन्हें ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी गई यहीं से आग़ाज़ हुआ मिल्खा सिंह के खिलाडी ज़िन्दगी का

 

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मेलबर्न ओलम्पिक 1956

साल था सन 1956 का जब मेलबर्न में आयोजित हुई थी ओलम्पिक जहाँ मिल्खा सिंह (Milkha Singh) ने पहली बार भाग लिया था मगर ये अनुभव उनके लिए काफी दिल तोड़ने वाला था वो कुछ सेकंड से पदक लेने से चूक गए थे वहां उन्होंने 200 और 400 मीटर दौड़ में भाग लिया था खैर पहली हार से उन्होंने बहुत कुछ सीखा और वहां उनकी मुलाक़ात चार्ल्स जेंकिन्स से हुई जिनसे मिलकर उनमे एक नई ऊर्जा का संचार हुआ चार्ल्स जेंकिन्स उनके प्रेरणा स्रोत बन गए

मिल्खा सिंह के कामयाबी का सफर

अपनी ओलम्पिक की हार का बोझ बहुत दिनों तक मिल्खा सिंह ने अपने कन्धों पर नहीं ढोया उन्होंने अब दोगुनी मेहनत की और खुद पर जितना काम कर सकते थे उन्होंने किया उसके बाद साल 1958 में ओडिशा के कटक में आयोजित हुए National Games of India में उन्होंने 200 और 400 मीटर में उन्होंने नया रिकॉर्ड बनाया जोकि 56 सालों तक किसी ने नहीं तोडा था

रोम ओलम्पिक 1960

ये साल मिल्खा के लिए थोड़ा निराशाजनक रहा था रोम में आयोजित ओलम्पिक में मिल्खा 400 मीटर की दौड़ में चौथे स्थान पर रहे इस बार वो कोई मैडल नहीं जित सके जिसके पीछे ये वजह बताई गई की मिल्खा सिंह को दौड़ के दरम्यान पीछे मुड़ के देखने की एक आदत थी दरअसल वो देखना चाहते थे की उनका प्रतिद्वंदी उनसे कितना पीछे है उस दिन भी यही हुआ और वो इस दौड़ में चौथे स्थान पर आये उनका जो समय 45.43 सेकंड का था जोकि फिर भी एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड था जिसको कोई 40 साल तक नहीं छू सका था

एशियन गेम्स

अब मिल्खा सिंह की रफ़्तार बिजली के बराबर मानी जाने लगी थी दुनिया भर में उनके खेल की प्रसंशा होने लगी थी इसी दरम्यान साल 1958 में हुए Asian Games में 200 और 400 मीटर की रेस में उन्होंने Gold Medal हासिल किया था फिर 1962 में जकार्ता में आयोजित हुए Asian Games में लगातार मिल्खा ने 2 Gold Medal जीते

फ्लाइंग सिख Flying Sikh

दुनिया भर में मिल्खा सिंह के नाम का डंका बजा हुआ था बड़े से बड़ा धावक उनके सामने आने से कतराता था अपनी इस प्रतिभा और शोहरत के बावजूद मिल्खा सिंह बड़े सुलझे और सीधे खिलाडी थे उनको अपनी उपलब्धियों का ज़रा सा भी घमंड नहीं था

एक बार का किस्सा है की पाकिस्तान में हुए Indo-Paak स्पोर्ट्स मीट में उन्हें जाने का नेवता मिला मगर वो पाकिस्तान जाना नहीं चाहते थे उनकी यादे जुडी हुई थी वहां से क्योंकि उनकी पैदाइश वहीँ हुई थी और उनके परिवार का अंत भी वहीँ हुआ था मगर जवाहल लाला नेहरू जो की उस वक़्त देश के प्रधानमंत्री थे उनके काफी समझने के बाद वो तैयार हुए और पाकिस्तान चले गए खेल में शामिल होने के लिए उन्होंने वहां भारतीय खेल दल का प्रतिनिधित्व किया 

वहां उनका सामना था पाकिस्तान में मशहूर स्टार अब्दुल खालिक के साथ जिसे मिल्खा ने बड़ी आसानी से 200 मीटर की दौड़ में हरा दिया और गोल्ड मैडल के हक़दार हुए उनकी रफ़्तार के वहां पाकिस्तानी भी कायल हो गए स्टेडियम में उनके नाम के नारे लगाए जाने लगे ये ही नहीं पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति ने मैडल सेरेमनी के भाषण के दौरान उनको फ्लाइंग सिख Flying Sikh कहकर पुकारा और उस दिन से उन्हें फ्लाइंग सिख के नाम से जाना जाने लगा

मिल्खा सिंह की जीत में एक दिन छुट्टी थी भारत में

ये बात है साल 1958 की जब कार्डिफ राष्ट्रमंडल खेल की जो की ब्रिटेन में हुआ था जिसमें मिल्खा सिंह ने गोल्ड मैडल जीता था ये जीत और दोगुनी तब हुई थी जब मिल्खा सिंह पहले ऐसे भारतीय बने थे जिन्होंने विदेशी धरती पर स्वर्ण पदक जीता था

इस ख़ुशी के मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मिल्खा सिंह से कहा की वो बताएं की उन्हें इस जीत की ख़ुशी में क्या चाहिए तब मिल्खा सिंह ने कहा था के वो चाहते है की इस ख़ुशी के मौके पर देश में एक दिन की छुट्टी हो उनकी इक्षा अनुसार देश में एक दिन की छुट्टी रखी गई थी

नही रहे मिल्खा सिंह

18 जून 2021 की रात 11:30 बजे कोरोना की वजह से मशहूर पूर्व स्प्रिंटर मिल्खा सिंह जी का निधन हो गया वो 91 साल के थे अभी 5 दिन पहले उनकी पत्नी का निधन हो गया था मिल्खा सिंह का 15 दिनों से चंडीगढ़ के PGIMER में कोरोना का इलाज चल रहा था 19 मई के दिन उनकी रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई थी 3 जून के दिन उनका ऑक्सीज़न लेवल काम होने लगा था जिसके बाद उनको ICU में भर्ती करा गया था मगर वो इस बार कोरोना की रेस हार गए भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।

 

 

 

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