बशीर बद्र की शायरी एक एक शब्द तीर जैसा चुभता है सुनने और पढ़ने वाले के दिल पर आप भी महसूस कीजिए 

गले में उस के ख़ुदा की अजीब बरकत है वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है

मेरी ग़ज़ल की तरह उस की भी हुकूमत है तमाम मुल्क में वो सब से ख़ूबसूरत है

इंसान अपने आप में मजबूर है बहुत कोई नहीं है बेवफ़ा अफ़्सोस मत करो

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा

इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला

चाँद चेहरा, ज़ुल्फ़ दरिया, बात ख़ुशबू, दिल चमन इक तुझे देकर ख़ुदा ने, दे दिया क्या क्या मुझे

तुम मोहब्बत को खेल कहते हो हम ने बर्बाद ज़िंदगी कर ली

जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाए रात भर भेजा वही काग़ज़ उसे हम ने लिखा कुछ भी नहीं