गुलज़ार की कुछ बेहतरीन शायरी सर आपके लिए !!! 

हम तो कितनों को मह-जबीं कहते आप हैं इस लिए नहीं कहते

चाँद होता न आसमाँ पे अगर हम किसे आप सा हसीं कहते

चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें

ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा वगर्ना ज़िंदगी ने तो रुला दिया होता

कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़ किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे

तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं

तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं

आज फिर जागते गुज़रेगी तेरे ख्वाब में रात आज फिर चाँद की पेशानी से उठता है धुआँ