फ़िराक़ गोरखपुरी Firaq Gorakhpuri
फ़िराक़ गोरखपुरी Firaq Gorakhpuri एक नाम जिसके माईने है उर्दू ज़बान और गज़लें, शेर, नज़्म और शायरी। अगर आप उर्दू शायरी Poetry को पसंद करते हैं और आप फ़िराक़ गोरखपुरी के नाम से वाकिफ़ नहीं तो फिर आप उर्दू ज़बान और शायरी को अभी ठीक से नहीं जानते। आइये आज जानते हैं उनकी ज़िंदगी के जाने अनजाने किस्से उनकी Biography उनकी Lifestyle और उनकी Poetry के बारे में तफ़सील से।
हममें से बहुत से लोग ये नहीं जानते होंगे की, फ़िराक़ गोरखपुरी का नाम असल में फ़िराक़ गोरखपुरी नहीं था। ये उनका तखल्लुस था उसका नाम था रघुपति सहाय। इनकी पैदाइश 28 अगस्त 1896 के दिन उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में हुआ था, इनकी वालिद का नाम जनाब मुंशी गोरखप्रसाद था जो की ख़ुद भी एक बड़े शायरों में से थे उस जमाने के उनका तखल्लुस (Pen Name) था “इबरत”।
फ़िराक़ गोरखपुरी की शुरुवाती ज़िंदगी
मुंशी गोरखप्रसाद “इबारत” उस जमाने के जाने माने शायरों में से एक थे वो अक्सर मुशायरों में जाया करते उस जमाने की नामचीन शायर उनके घर आया करते घर में ही कई बार महफिलें सज जाया करती और एक तरफ थीं उनकी माता जी जो की एक धार्मिक जेहन की महिला थीं वो अपना समय पुजा पाठ रामचरित मानस महाभारत के पाठ में लगाया करतीं तो एक तरफ उनके घर में शायरी की मीठी से हवा बहती तो एक तरफ से पुराणों वेदों की मधुर आवाज़ आ जाया करती नन्हा रघुपति सहाय यानि फ़िराक़ गोरखपुरी Firaq Gorakhpuri की शुरुवाती ज़िंदगी इस तरह के साँचे में ढल रही थी और वो रघुपति सहाय से फ़िराक़ गोरखपुरी बनने के रास्ते पर चल पड़े थे।
फ़िराक़ गोरखपुरी की पढ़ाई लिखाई
घर का जो माहौल था उससे ये पता लगाना मुश्किल नहीं था की फ़िराक़ को पढ़ाई लिखाई का बहुत शौक था, हर बच्चे की तरह उनकी पढ़ाई लिखाई भी घर से ही शुरू हुई वो अपनी माँ से रामचरित मानस महाभारत सुना करते और उनके साथ पढ़ा भी करते फिर जब उनकी उम्र हुई की उन्हे स्कूल जाना चाहिए। तो उनका गोरखपुर कमीशन स्कूल में दाखिला करवा दिया गया वो दौर था की, उस वक़्त पढ़ाई लिखाई की ज़ुबान थी उर्दू, अरबी, हिन्दी और अंग्रेज़ी उन्होने इन सब ज़बानों में महारत हासली कर ली और फिर आगे की पढ़ाई के लिए उन्हे जाना पड़ा इलाहाबाद (प्रयागराज) जहां उन्होने म्यों कॉलेज में दाखिला लिया।
इलाहाबाद और फ़िराक़ गोरखपुरी
इलाहाबाद में फ़िराक़ गोरखपुरी Firaq Gorakhpuri की पढ़ाई लिखाई हुई पढ़ने लिखने वो वो बहुत तेज़ थे। लिहाज़ा वो Diputy Collector के पद पर आसीन हो गए, मगर ये द्दिल आउर ज़ेहन था तो शायर का और शायर की रगों में ख़ून के साथ बगावत बहती है, खैर नौकरी के दौरान ही महात्मा गांधी जी ने असहयोग आंदोलन छेड़ दीया जिससे प्रभावित हो कर फ़िराक़ साहब ने नौकरी छोड़ दी और आंदोलन में शामिल हो गए और इसकी जेल भी जाना पड़ा
इसके बाद उन्होने पंडित जवाहर लाल नेहरू के सहायक के रूप में भी काम किया और फिर उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अँग्रेजी अध्यापक के तौर पर भी कई साल तक काम किया वो ना सिर्फ हिन्दी,उर्दू के जानकार थे उनकी English Language में भी गहरी पकड़ थी फर्राटे से अँग्रेजी में बात किया करते वो शायर थे मगर बहुत अल्हड़ मुहफट हाज़िर जवाब भी थे
पंडित नेहरू और फ़िराक़ गोरखपुरी
कई साल तक फ़िराक़ गोरखपुरी निजी सहायक के तौर पर पंडित नेहरू के साथ रहे दोनों के आपसी संबंध दोस्तों जैसे थे एक बार का किस्सा है की जब देश आज़ाद हो गया और पंडित नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने तो किसी काम से फ़िराक़ उनसे मिलने गए उनके दफ्तर के बाहर एक कर्मचारी ने उन्हे मिलने का कारण पूछा और उनका नाम पूछ कर एक पर्ची पर लिखा R. Sahay (Ragupati Sahay) और नेहरू जी के पास भेज दिया बहुत देर इंतज़ार करने के बाद भी जब उनको नहीं बुलाया गया तो वो गुस्से से चीखने चिल्लाने लगे उनका शोर सूनकर नेहरू जी बाहर आए और उन्हे शांत करवाया और अपने साथ अंदर ले गए उन्होने फ़िराक़ से कहा पर्ची पर R. Sahay लिखा था और मैं तुम्हें रघुपति सहाय के नाम से जानता हूँ
फ़िराक़ का निजी जीवन
वो ज़माना था की जब शादियाँ कम उम्र में हो जाया करतीं थीं 29 जून 1914 के दिन फ़िराक़ साहब की भी शादी कर दी गई जिन से शादी हुई उनका नाम था किशोरी देवी किशोरी देवी के पिता इलाके के बहुत दबंग और मशहूर जमींदार थे दबदबा था उनका उस इलाके में
शादी के कुछ ही दिन बीते और जो अक्सर शायरों के साथ होता है उनका दिल अपनी पत्नी के साथ नहीं लग सका दोनों के बीच अक्सर किसी न किसी बात पर विवाद होता जो सपना किशोरी देवी ने देखा था फ़िराक़ साहब को लेकर वो इतनी जल्दी टूट गया की उसका नतीजा ये हुआ की दोनों ने ये फैसला किया की अब जिंददगी अलग अलग बितानी चाहिए और दोनों का रिश्ता तलाक़ पर आकर ख़त्म हुआ इस शादी से उन्हे 3 बच्चे भी हुए जिसमें से एक लड़का था उनका और 2 लड़कियां।
फ़िराक़ साहब के पुरस्कार और सम्मान
वैसे तो फ़िराक़ साहब ने जो काम किए उर्दू ज़ुबान और शायरी के लिए दुनियाँ उनको क्या दे पाती मगर जो कुछ भी हो सका वो उन्हे देने की कोशिश की गई।
उनकी ग़ज़लों की एक किताब गुल-ए-नगमा के लिए उन्हे सन 1960 में उन्हे साहित्य अकादमी पुरुसकार से नवाज़ा गया। इस किताब की गुणवत्ता देखते हुए, सन 1970 में फिर फ़िराक़ साहब को भारतीय ज्ञान पीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फ़िराक़ गोरखपूरी साहब को उनके शायरी और उर्दू जबान मे दिये गए योगदान के लिए पद्मभूषण, जनपथ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनको सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था इसके अलावा भारत सरकार ने उनकी उपलब्धियों के सम्मान के लिए उनके नाम का एक डाक टिकट भी जारी किया था
फ़िराक़ साहब का आखरी समय
अपनी ज़िंदगी के आख़री दिनों में फ़िराक़ साहब बिलकुल अकेले रह गए थे। वैसे भी उनके बारे में कहा जाता था की वो अपने दर्द को दूसरों को बढ़ा चढ़ा कर बयान किया करते थे और उस दर्द को बहुत बड़ा बनाकर खुद को ज़्यादादुख दिया करते थे ऐसे ही दद को पालते सहलाते 3 मार्च 1982 इस शायर ने दुनियाँ का साथ छोड़ दिया उनके जाने से शायरी की ज़मीन में जो खालीपन पसरा वो आज भी वैसा का वैसा ही है मगर शुक्र है की उनकी लिखी गज़लें, नज़्मे शायरी सब है जो उर्दू ज़बान और उर्दू शायरी को पसंद करने वाले हैं उनकी कमी महसूस नहीं होने देंगी और आने वाली कई पीढ़ियों को रौशनी देती रहेंगी।
फ़िराक़ की रचनाएँ
1 गुल-ए-नगमा
2 रूहे-कायनात
3 गजालिस्तान
4 शबिस्तान
5 धरती की करवट
6 चिरागां
7 हज़ार दास्ताँ
8 गुलबाग
9 नकुश
10 परछाइयाँ
11 मशअल
12 नग्म-ए-साज़
13 शेरिस्तान
14 रूप
15 रम्ज व कायनात
16 शोला-ओ-साज़
17 बज़्म-ए-ज़िंदगी रंग-ए-शायरी
18 जुगनू
19 आधीरात
20 तराना-ए-इश्क़
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