asaduddin owaisi fire brand leader biography in hindi

AIMIM आल इंडिया मजलिस- ए- इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष और एक बहुत ही तेज़ तर्रार वक्ता के रूप में जाने जाते हैं, असदुद्दीन ओवैसी Asaduddin Owaisi पहली बार साल 2004 में हैदराबाद से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद भवन पहुंचे उसके बाद आज तक वो लगातार लोकसभा के चुनाव जीतते आ रहे हैं।

असदुद्दीन ओवैसी की शुरुवाती ज़िन्दगी

13 मई 1969 के दिन असदुद्दीन ओवैसी Asaduddin Owaisi  का जन्म हुआ था। इनके वालिद (पिता) का नाम सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी और वालिदा (माता) का नाम नजमुनिशा ओवैसी है। ओवैसी का परिवार एक सुन्नी मुस्लिम है, इनका परिवार एक राजनैतिक परिवार रहा है शुरू से। असदुद्दीन के दादा ने 18 सितम्बर 1958 के दिन AIMIM आल इंडिया मजलिस- ए- इत्तेहादुल मुसलमीन पार्टी का दुबारा गठन किया था। असदुद्दीन के पिता सुल्तान सलाहुद्दीन साल 1962 में आंध्र प्रदेश के विधान सभा के लिए पहली बार चुने गए।

फिर पहली बार साल 1984 में सुल्तान सलाहुद्दीन हैदराबाद सीट से लोकसभा का चुनाव जीत कर भारतीय संसद में पहुंचे। साल 2004 तक वो वहां से जीतते रहे मगर फिर बीमारी के चलते उन्होंने अपने बेटे असदुद्दीन के लिए अपनी सीट छोड़ दी, फिर साल 2008 में उनका इन्तेकाल हो गया।

असदुद्दीन ओवैसी की पढाई लिखाई (Education of Asaduddin Owaisi)

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शुरुवाती पढाई लिखाई असदुद्दीन की हैदराबाद के हैदराबाद पब्लिक स्कूल से हुई। उसके बाद उन्होंने निज़ाम कॉलेज हैदराबाद से आर्ट्स से बैचलर्स की डिग्री ली, उसके बाद वकालत की पढाई करने के लिए वो लंदन चले गए जहाँ उन्होंने लिंकन इन में बैचलर ऑफ लॉज़ और बैरिस्टर-एट-लॉ की पढाई की और एक वकील बन गए।

असदुद्दीन और उनका क्रिकेट प्रेम  (Asaduddin and Cricket)

बहुत कम लोग ये जानते हैं की राजनीती में विपक्षियों की अपने दलीलों से स्टाम्प उखाड़ देने वाले असदुद्दीन ओवैसी Asaduddin Owaisi एक बेहतरीन क्रिकेट खिलाडी भी रह चुके हैं। जब असदुद्दीन निज़ाम कॉलेज में पढाई कर रहे थे, तो उस ज़माने में उनको क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था वो एक बेहतरीन तेज़ गेंदबाज़ थे। 

1994 में विज्जी ट्रॉफी में उन्होंने दक्षिण भारत में होने वाले अंडर 25 में अपने कॉलेज टीम का प्रतिनिधित्व भी किया हुआ है। उनके बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए उनको दक्षिण भारत के टीम के लिए शामिल भी किया गया ,अगर आज वो राजनीती में ना होते तो शायद वो आज भारत की क्रिकेट टीम में अपना प्रदर्शन दे रहे होते।

असदुद्दीन ओवैसी का परिवार (Family of Asaduddin)

सुल्तान सलाहुद्दीन यानी असदुद्दीन ओवैसी Asaduddin Owaisi के वालिद की तीन संतान है, तीनो बेटे हैं असदुद्दीन, अकबरुद्दीन और बुरहानुद्दीन अकबरुद्दीन बड़े भाई असदुद्दीन की तरह राजनीती में सक्रिय हैं। वो तेलंगाना विधान सभा में विधायक है। ये अकसर अपने भाषणों और टिप्पणियों की वजह से मीडिया में चर्चा में रहते हैं, सबसे छोटा भाई बुरहानुद्दीन समाचार पत्र एतेमाद के संपादक हैं।

असदुद्दीन की शादी साल 1996 में हुई उनकी पत्नी का नाम फ़रहीन ओवैसी है इन दोनों के 6 बच्चे हैं इसमें से एक बेटा और पांच बेटियां हैं।

 

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असदुद्दीन ओवैसी की राजनीती

एक वकील और संविधान के अच्छे जानकार होने के अलावा वो एक अच्छे वक्ता भी हैं वो हज़ारों की भीड़ को भी सिर्फ अपने भाषण की वजह से रोक सकते हैं घंटों टीवी डिबेट्स में उनके सामने जो कोई भी आ जाये यहाँ तक की उस शो का एंकर भी उनसे बात करने और उनके बात को काटने की हिम्मत नहीं दिखा पाते हैं

उन्होंने हमेशा आम आदमी, मुस्लिम और दलित पिछड़े की राजनीती की है वो दक्षिण पंथी पार्टियों के मुखर विरोधी हैं उनपर ये हमेशा ये आरोप लगाया जाता है की वो सिर्फ मुसलमानो की बात करते हैं अगर जब वो इन आरोपों का जवाब अपने अंदाज़ में देते हैं कोई उनकी बात नहीं काट सकता लोग उनके भाषण देने के अंदाज़ से कहते हैं की वो भड़काऊ भाषण देते हैं

असदुद्दीन ओवैसी Asaduddin Owaisi जब लौटे लंदन से अपनी पढाई ख़त्म कर वापस वतन लौटे तब उनके पिता राजनीती में सक्रीय थे वो AIMIM के अध्यक्ष थे पहली बार साल 2004 में लोकसभा के चुनावों में असदुद्दीन की जीत हुई और वो संसद पहुँच गए उसके बाद 2019 तक के चुनावों तक ये सिलसिला बना रहा साल 1984 से हैदराबाद के ये सीट ओवैसी के परिवार के पास ही है

असदुद्दीन के AIMIM के अध्यक्ष बनाने के पहले ये पार्टी एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में काम कर रही थी मगर जब से असदुद्दीन ने पार्टी की कमान संभाली है अब इसको पुरे देश में जाना जाने लगा है असदुद्दीन जिस तरह से मुसलमानों और दलित पिछड़ों की बातें करते हैं संसद में और मीडिया डिबेट्स में उससे उन्होंने ने ना सिर्फ मुसलमानों में एक ख़ास जगह बनाई है अपनी बल्कि पढ़ा लिखा वर्ग भी अब धीरे धीरे उनकी बातों से संतुष्ट नज़र आता है वो संविधान के दायरे में रहकर सरकारों और मंत्रियों उनकी नीतियों का विरोध करते हैं

इन सब बातों का असर ये हुआ है की अब ना सिर्फ उनके हैदराबाद में बल्कि देश के अक्सर राज्यों में उनकी एक अलग छबि बन रही है लोग उनके तर्कों उनके अंदाज़ से प्रभावित होते जा रहे हैं इसका परिणाम ये हो रहा है की महाराष्ट्र बिहार में उन्होंने नगरीय निकाय और विधानसभा चुंनावों में अपने पार्टी की जीत दर्ज करवा ली है

जय भीम जय मीम

असदुद्दीन ओवैसी Asaduddin Owaisi पर आये दिन ये आरोप लगाए जाते हैं की वो मुसलमानों के नेता बनाने की कोशिश कर रहे हैं कुछ लोग तो उन्हें नए दौर का जिन्ना भी कहकर बुलाते हैं इस बात से उलट असदुद्दीन ने दलितों और मुसलमानो की बात शुरू कर दी वो याद दिलाते हैं की आज़ादी के बाद किसी सरकार ने दलितों मुसलमानो के लिए कुछ भी नहीं किया सिर्फ उनको वोट के लिए इस्तेमाल किया गया ना उनकी पढाई लिखाई पर किसी ने काम किया ना उनको नौकरी में ना ही उनको राजनितिक अवसर दिए गए यही उनके हिसाब से यही कारण है की ये वर्ग हमेशा पिछड़ा रहा

असदुद्दीन दलितों को साथ रखने के लिए अपनी हर रैली और हर भाषण में संविधान और डॉ भीम राव अम्बेडकर के बात याद दिलाते हैं पोस्टरों में अपने आंबेडकर की फोटो लगाते हैं ताकि ये सन्देश दलितों पिछड़ों को दिया जा सके की वो उनके साथ हैं उन्होंने महाराष्ट्र में कई दलितों को भी नगरीय निकाय और विधानसभा चुनावों में टिकट दिए और उनकी जीत भी हुई इस तरह उन्होंने “जय भीम जय मीम” का नारा भी दिया हुआ है जोकि काफी काम कर रहा है

असदुद्दीन ओवैसी का विवादों से नाता

हमेशा उन्हें ना पसंद करने वाले कहते हैं की वो एक खास वर्ग (मुसलमानो) की बात करते हैं सिर्फ और उन्हें पसंद करने वाले कहते हैं की वो बिना किसी से डरे बेबाक तरीके से सबके हक़ की बात करते हैं उनपर ये आरोप लगाया जाता है BJP और हिंदूवादी पार्टियों की तरफ से की वो नफ़रत फ़ैलाने का काम करते हैं वहीं दूसरे दल उनको कहते हैं की वो BJP की पक्ष में काम करते हैं उनसे जुड़ कई सारे विवाद हैं जिनपर वो बिना झिझके बेबाक होकर जवाब देते हैं यही वजह भी है शायद की वो लोगों को अब पसन्द आने लगे हैं विशेषकर नौजवानों को उनसे जुड़े कुछ मुख्य विवाद

भारत माता की जय नहीं बोलना

ओवैसी एक बात कहते हैं की आप उनकी देशभक्ति का सबूत नहीं मांग सकते और भारत माता की जय बोलना ये नहीं है की जो बोलता है वो देश भक्त ही हो वैसे बात सच भी है वो केहतेहैं की अगर ऐसा कानून बन जाये की सब भारतीय नागरिक को बोलना हो गे भारत माता की जय तो वो भी बोलेंगे मगर ऐसे अगर कोई उनकी गर्दन पर छुरी भी रख देगा तो वो भारत माता की जय नहीं बोलेंगे 

जब ओवैसी बंधुओं को जाना पड़ा जेल 

दरअसल बात ये हुई थी मेडक ज़िले में एक मस्जिद थी जो जिसको गिरा कर वहां से सड़क बनानी थी ये सड़क के किनारे थी मस्जिद और सड़क के चौड़ीकरण का काम चल रहा था जिसपर असदुद्दीन और उनके bhai अकबरुद्दीन ओवैसी ने इसका विरोध किया सरकारी काम में बढ़ा डालने और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए उन दोनों पर कई सारी धाराएं लगाकर जेल में दाल दिया गया था ये बात है साल 2013 की

बाबरी मस्जिद राम जन्म भूमि का विवाद 

असदुद्दीन ओवैसी कभी किसी हिन्दू के खिलाफ कोई बात नहीं करते वो बस हिंदुत्व वाड़ी सोच के खिलाफ बात करते हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर बनाने का आदेश दे दिया तब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाराज़गी दर्ज की और  उन्होंने कहा की सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी विरोध किया जा सकता है 

ट्रिपल तलाक के खिलाफ 

जब भी कोई ऐसी बायत हो की जिसका कोई विरोध नहीं करना चाहेगा एक आदमी आपको ज़रूर नज़र आ जायेगा उसका विरोध करते समाचार चैनलों समाचार पत्रों में व्वो है असदुद्दीन ओवैसी जब संसद के दोनों सदनों ने ट्रिपल तलाक़ पर कानून बनने पर अपनी सहमति दे दी तब ओवैसी ने इसका भरपूर विरोध किया उन्होंने कहा की एकोई ऐतिहासिक फैसला नहीं हुआ है ये मुस्लिम महिलाओं के साथ नाइंसाफी हुई है इससे मुस्लिम महिलाओं का नुक्सान होगा

भारत रत्न पर विरोध 

असदुद्दीन ओवैसी ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भारत रत्न देने का NDA सरकार के फैसले का भी पुरज़ोर विरोध किया था उनका कहना था की भारत रत्न देने में भी राजनितिक धार्मिक विचारों को सामने रखा जाता है वो केहतेहैं दलितों और मुसलमानो को इस सब से हमेशा वंचित रखा जाता है 

हज सब्सिडी के खिलाफ

ऐसा नहीं की वो सिर्फ मुसलमान की तरफ से बात करते हैं वो हज में दी जाने वाली सब्सिडी के खिलाफ भी हैं उनका कहां है की जो ये हज में सब्सिडी दी जाती है उसको रोक देनी चाहिए और उन पैसों को  मुस्लिम महिलाओं के उत्थान में खर्च करना चाहिए

संसद रत्न अवार्ड

असदुद्दीन ओवैसी को उनके संसद में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए संसद रत्न अवार्ड दिया गया था ओवैसी को भारतीय संसद के 15वें सत्र में उनके प्रदर्शन के लिए 2014 संसद रत्न पुरस्कार (सांसदों का रत्न) अक्टूबर 2013 से सम्मानित किया गया था। इस अवधि के दौरान, उन्होंने 292 के राष्ट्रीय औसत की तुलना में संसद में 1080 प्रश्न पूछे। 70% पर उनकी उपस्थिति राष्ट्रीय औसत से 6% कम थी।

 

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