EEZ KA Full From | Exclusive Economic Zone kya hai

EEZ KA Full From – जिस तरह धरती का बंटवारा किया जाता है सीमाओं के ज़रिये वैसे ही समुद्र का भी बंटवारा किया जाता है जैसे भारत और पाकिस्तान के बीच जो अरब महासागर है उसके कुछ हिस्से में भारत का तो कुछ हिस्से में पाकिस्तान का अधिकार है ये EEZ (Exclusive Economic Zone) का इलाका किसी भी देश के प्रादेशिक समुद्र से अलग होता है भारत की प्रादेशिक समुद्री सीमा तट से 12 मील की दूरी तक स्थित है इसके बाद अगले 200 किलोमीटर तक भारत का EEZ  होगा। प्रादेशिक जल के बीच से सभी विदेशी जहाजों, पनडुब्बियों को इनोसेंट पैसेज (युद्धपोत, पनडुब्बी या व्यापारिक जहाज उस देश के लिए खतरा नहीं है) के आधार पर घुसने का अधिकार होता है

EEZ ka full form क्या होता है

इसका EEZ का फुल फॉर्म होता है Exclusive Economic Zone हिंदी में इस अनन्य आर्थिक क्षेत्र कहा जाता है कुछ समय पहले एक अमेरिकी युद्धपोत भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में चला आया था अब पाकिस्तान ने ये आरोप लगाया है की भारतीय पनडुब्बी उसके अनन्य आर्थिक क्षेत्र यानी Exclusive Economic Zone में दाखिल हो गई है उसने ये दवा भी किया 19 अक्टूबर 2021 को की उसने भारत के इस पनडुब्बी को अपनी सीमा से बाहर खदेड़ दिया है अब सवाल ये उठता है की आखिर ये EEZ होता क्या है इसका निर्धारण कैसे होता है और कौन करता है इसका निर्धारण क्या है कानून इसके आज इस आर्टिकल में हम ये सब जानेंगे साथ रहिये और पढ़ते रहिये इस आर्टिकल को

क्या है ये EEZ (Exclusive Economic Zone)

EEZ KA Full From | Exclusive Economic Zone kya hai

दो ऐसे देश जिनकी सीमायें एक ही समुद्र के तट पर हों उनके बीच होता है ये EEZ (Exclusive Economic Zone) जैसे भारत और पाकिस्तान की धरती एक ही समुद्र अरब महासागर के तट पर स्थित है अब भारत के लिए उसका EEZ मुंबई के समुद्री तट से 200 किलोमीटर दूर तक समुद्र में होगा जहाँ भारत सु समुद्र का दोहन अपने लिए कर सकता है इसका अधिकार भारत के पास होगा ऐसा ही EEZ हर देश के पास होता है जिसका उपयोग वो अपनी सहूलियत के हिसाब से करता है ये संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून के अंतर्गत आता है

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून क्या है UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS

पृथ्वी पर धरती से ज़्यादा जल उपलब्ध है आम तौर पर बात सिर्फ धरती की सीमाओं की होती है मगर आपको जान कर ये हैरानी होगी की जिस तरह धरती के टुकड़ों के लिए युद्ध होते हैं उसी तरह समुद्र की सीमाओं के लिए भी युद्ध हुआ करते थे तब संयुक्त राष्ट्र ने समुद्री कानून Convention on the Law of the Sea बनाया जिसमें इन बातों पर विशेष बल दिया गया

  • ये कानून देशों के बीच सागरों और महासागरों के अधिकार और दायित्व को तय करता है
  • समुद्री संसाधनों के दोहन और प्रयोग के लिए नियमों का निर्धारण करता है
  • संयुक्त राष्ट्र ने इस कानून को वर्ष 1982 में अपनाया था लेकिन यह नवंबर 1994 में प्रभाव में आया
  • भारत ने वर्ष 1995 में UNCLOS को अपनाया, इसके तहत समुद्र के संसाधनों को तीन क्षेत्रों में बांटा गया – आंतरिक जल (IW), प्रादेशिक सागर (TS) और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ)

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आतंरिक जल Internal Water क्या होता है 

ये समुद्री तट के सबसे निकटतम इलाके में होता है इसमें कड़ी और छोटे छोटे खंड शामिल होते हैं

प्रादेशिक सागर Territorial Sea क्या होता है 

इसकी सीमा बेस से 12 समुद्री मील तक फैला हुआ इलाका होता है इसमें हवाई क्षेत्र, समुद्र, सीबेड और सबसॉइल पर तटीय देशों की संप्रभुता होती है एवं इसमें सभी जीवित और गैर-जीवित संसाधन शामिल हैं।

भारत कब स्वीकारी थी संयुक्त राष्ट्र की समुद्री कानून संधि

वर्तमान में इस समुद्री कानून को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली हुई है। इस आधार पर किसी भी देश को एक दूसरे के ईईजेड में जाने से पहले कुछ सावधानियां बरतनी पड़ती है। इस कानून को सबसे पहले दिसंबर 1982 में मान्यता के लिए पेश किया गया। जिसके बाद यह संधि वर्ष 1994 में अपने अनुच्छेद 308 के अनुसार लागू हुई। इस कानून को दुनिया के 168 देशों ने मान्यता दी है। भारत ने 1995 में इस संधि को स्वीकार किया, जबकि दुनिया में स्वतंत्र नौवहन का सबसे बड़ा रहनुमा होने का दावा करने वाले अमेरिका ने इसे अभी तक मान्यता नहीं दी है

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