Sam Manekshaw – इनका पूरा नाम शाहजी होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेद जी मानेकशॉ (Shahji Hormusji Jamshedji Manekshaw) था। इन्ही की नेतृत्व में भारत ने सन 1971 की लड़ाई पाकिस्तान से जीती थी, और इस लड़ाई के बाद ही पाकिस्तान से बांग्लादेश को आज़ाद करवा कर नए देश का निर्माण किया गया था इन सब गतिविधियों के नायक के रूप में सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) को जाना जाता है।
Sam Manekshaw की शुरुवाती ज़िन्दगी
एक बेहद कुशल फौजी और कामयाब सेनाध्यक्ष के रूप में हमेशा जाना जाता है, फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को। इनका परिवार गुजरात के वलसाड ज़िले से पंजाब के अमृतसर शहर आकर बस गया था. जहाँ उनका 3 अप्रैल 1914 के दिन जन्म हुआ, वो एक पारसी परिवार से थे मानेकशॉ की शुरुवाती पढाई लिखाई उनके शहर अमृतसर से ही हुई थी. फिर आगे की पढाई के लिए वो नैनीताल चले गए, जहाँ उन्होंने शेरवुड कॉलेज में दाखिला लिया. पढते पढ़ते उनमें फ़ौज में जाने की सोची जिसके बाद वो देहरादून के IMA (Indian Milatry Academy) के पहले बैच में चुने गए, उनके साथ अन्य 40 छात्रों को भी चुना गया था. IMA देहरादून से कमिशन लेने के बाद वो सन 1934 में भारतीय सेना में शामिल हो गए.
निजी ज़िन्दगी सैम मानेकशॉ की
सैम मानेकशॉ जहाँ एक कठोर फौजी ज़िन्दगी जीते थे, हमेशा अनुशासन में रहते और अपने आसपास भी अनशासन बनाये रखते थे. वहीं वो एक हंसी मज़ाक करने वाले और काफी दिलचस्प बातें करने में भी माहिर थे, उनके दोस्तों रिश्तेदारों के बीच वो काफी लोकप्रिय थे अपनी हाज़िरजवाबी की वजह से।
ऐसे ही एक पैरवारिक समारोह में साल 1937 में वो लाहौर गए हुए थे, जहाँ उनकी मुलाक़ात सिल्लो बोडे से हुई जो की खुद भी के पारसी लड़की थीं। दोनों में दोस्ती हो गई वो कभी कभी मिलते रहे इसी बीच दोंनो की दोस्ती प्यार में बदल गई मानेकशॉ उनसे शादी करना चाहते थे। उन्होंने सिल्लो से अपने दिल की बात कही और वो भी राज़ी हो गई, फिर मुलाक़ात के लगभग 2 साल बाद 22 अप्रैल 1939 के दिन दोनों ने शादी कर ली। अब सिल्लो बोडे दोस्त नहीं बल्कि मानेकशॉ की पत्नी बन गई। थी
मानेकशॉ एक बेख़ौफ़ फौजी
1934 में भारतीय सेना में भर्ती होने के बाद उनका पहला सामना हुआ युद्ध से द्वितीय विश्व युद्ध में उस वक़्त सैम 17 वीं इन्फेंट्री डिवीज़न में तैनात थे। जब उन्हें फ्रंटियर फाॅर्स रेजिमेंट का कप्तान बनाकर बर्मा के सेतांग नदी के तट पर भेजा गया। जहाँ उन्होंने सीधे जापानी फ़ौज से लोहा लिया बहादुरी से और इस अभियान में गंम्भीर रूप से घायल हो गए, किसी को उम्मीद नहीं थी की वो फिर अपने पैरों पर खड़े हो सकेंगे और लड़ाई की कमान पाने हाथों में ले सकेंगे।
उन्हें इलाज अविभाजित भारत के क्वेटा (आज के पकिस्तान का एक शहर) के स्टाफ क्वार्टर्स में भेजा गया, जहाँ से कुछ दिनों में वो ठीक होकर फिर लड़ाई में शामिल होने के लिए उस वक़्त के जनरल स्लिम्स की 14 वीं सेना के 12 फ्रंटियर रायफल फाॅर्स में लेफ्टिनेंट बनकर उसी जोशो खरोश के साथ बर्मा के जंगलों में लौट आये, जहां उन्होंने जापानी फौजियों के नाक में फिर से दम कर दिया।
इसी बीच वो दुश्मनों की रणनीति का शिकार हो गए, जहाँ वो फिर से एक बार बहुत बुरी तरह से घायल हो गए उनका इलाज चला कुछ ही दिनों के इलाज के बाद वो फिर पूरी तरह से स्वस्थ हो गए।
इसी बीच ये द्वितीय विश्व युद्ध भी समाप्त हो गया फिर सैम को स्टाफ ऑफिसर बनाकर जापानी सैनिकों के आत्मसमपर्ण करवाने के लिए इंडो- चाइना भेजा गया जहाँ उन्होंने लगभग 10000 युद्ध बंदियों के पुनर्वास कार्यकर्म में हिंसा लिया जिसके लिए उनकी खूब तारीफ की गई।
उसके बाद सन 1946 में यानी देश के आज़ादी के एक साल पहले उन्हें फर्स्ट ग्रेड अफसर के तौर पर मिलिट्री ऑपरेशंस डायरेक्टरेट में कार्यरत रहे फिर वो दिन भी आया जिसका सबको सदियों से इंतज़ार था। यानी देश आज़ाद हो गया मगर इस आज़ादी की हमने बहुत बड़ी कीमत चुकाई आज़ाद होते ही देश दो टुकड़ों में बंट गया एक बना पाकिस्तान और एक भारत।
जिसका नतीजा ये हुआ की सन 1947-48 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया, जिसमें मानेकशॉ ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत को फिर एक बार जीत का स्वाद और पाकिस्तान को धुल चटाई।
भारत के आज़ादी बाद पहली बार किसी भारतीय को गोरखा सैनिकों की कमान सौंपी गई थी और वो थे सैम मानेकशॉ। गोरखा सैनिक ही उन्हें सैम बहादुर कहा करते थे। 1968 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। नागालैंड समस्या को सुलझाने में जो उन्होंने काम किया था उसके लिए।
फिर सन 1969 में जनरल कुमारमंगलम के बाद 8 वे चीफ ऑफ़ द आर्मी स्टाफ का पद दिया गया, इस बात को अभी ज़्यादा समय नहीं बिता था की, उनके आर्मी करियर का सबसे महत्वपूर्ण समय आ गया जब पूर्वी पाकिस्तान ( बंग्लादेश) से हज़ारों की संख्या में शरणार्थी भारत की सिमा के पार आने लगे, युद्ध के इस माहौल में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने फैसला किया युद्ध का जिसमें पाकिस्तान की करारी हार हुई और बंगलादेश को आज़ादी मिली पाकिस्तान से।
इस युद्ध के नायक बने मानेकशॉ जिसके लिए उन्हें सन 1972 में पद्मविभूषण और 1 जनवरी 1973 के फील्ड मार्शल के पद से अलंकृत किया गया।
सैम मानेकशॉ से जुडी कुछ अद्भुत बातें
- साल 1942 में विश्व युद्ध के दौरान एक जापानी सैनिक ने मशीन गन से मानेकशॉ पर गोलियां बरसा दिन उसको 7 गोलियां लगीं, फौजियों को आदेश था की घायल सैनिकों को वही छोड़कर आगे बढ़ा जाये जब मानेकशॉ घायल हुए तो उनका अर्दली सूबेदार शेर सिंह उनको कंधे पर लाद कर वापस ले आया डॉक्टर ने उनकी हालत देखकर इलाज से मन कर दिया शेर सिंह ने अपनी बन्दुक डॉक्टर पे तान दी और कहा साहब को कुछ हुआ तो मैं आपको गोली मार दूंगा डरकर डॉक्टर ने इलाज किया और करिश्माई तरीके से मानेकशॉ ठीक हो गए।
- 1962 में चीन से हार जाने के बाद मानेकशॉ को चौथी कोर की कमान सौंपी गई उसके बाद उन्होंने सैनकों को सम्बोधित करते हुए कहा की आज के बाद आप में से कोई पीछे नहीं हटेगा जब तक आपको लिखित आदेश प्राप्त न हो जाये और मेरा यकीं कीजिये ऐसा आदेश आपको कभी नहीं मिलेगा
- एक बार उस वक़्त के रक्षा सचिव हरीश सरीन किसी विषय में सैन्य अधिकारीयों की मीटिंग ले रहे थे उन्होंने एक कर्नल को इशारा कर के कहा की वो खिड़की खोल दें तभी वहां मानेकशॉ आ गए उन्होंने हरीश सरीन की तरफ गुस्से से देखा और कहा आज के बाद आप मेरे किसी साथी से इस टोन में बात नहीं करेंगे वो कोई और नहीं मेरा कर्नल है हरीश सरीन को कर्नल से माफ़ी मांगनी पड़ी थी
- 1971 में जब पाकिस्तान से युद्ध हुआ इंदिरा गाँधी चाहती थीं की युद्ध मार्च के महीने में हो उन्होंने मानेकशॉ से कहा पाकिस्तान पर चढ़ाई करने के लिए मानेकशॉ ने उनकी बात काटते हुए कहा अगर आप चाहती है की लड़ाई हम जीते तो आपको 6 महीने का इंतेज़ार करना होगा फ़ौज अभी तैयार नहीं लड़ाई के लिए उनको भी मानेकशॉ की बात माननी पड़ी और युद्ध हुआ भारत जीता भी
- मिजोरम की एक बटालियन ने भारत चीन युद्ध से पीछे हटने की बात सोची तो मानेकशॉ ने उन्हें चूड़ियां भिजवा दी थीं और एक पत्र लिखा जो पीछे हेट उसको ये चूड़ियां पहनवा दी जाएँ फिर उस बटालियन ने युद्ध में हिस्सा लिया और अच्छे से लड़ाई लड़ी भी थी
सैम मानेकशॉ जब ज़िन्दगी से हार गए
साल था 1973 का जब वो भारतीय सेना के प्रमुख के पद से रिटायर हो गए तब उन्होंने फैसला किया तमिलनाडु के वेलिंग्टन में बस जाने का। वो वही रहने लगे उम्र ज़्यादा हो गई थी, जिसके चलते उन्हें कई बिमारियों ने घेर लिया था ऐसे ही एक बार फेफड़ों में संक्रमण हुआ उनको और वो कोमा में चले गए। जिसकी वजह से उनकी मृत्यु होगी वो तारीख थी 27 जून सन 2008 वक़्त था रात 12:30 का जगह थी वैलिंग्टन का सैनिक हॉस्पिटल।
सैम मानेकशॉ की बायोपिक
मशहूर फिल्म निर्माता मेघना गुलज़ार ने सैम मानेकशॉ की ज़िन्दगी पर आधारित फिल्म बनाने का ऐलान किया है, उस बायोपिक का नाम उन्होंने रखा है, सैम बहादुर Sam Bahadur जिसमें मानेकशॉ की भूमिका में नज़र आयंगे मशहूर अभिनेता विक्की कौशल Vicky Kaushal , इस बायोपिक को प्रोडूस करेंगे रोनी स्क्रूवाला भवानी अय्यर इस की स्क्रिप्ट लिख रहे हैं, इस बायोपिक के डायलॉग शांतनु श्रीवास्तव लिख रहे हैं ये बायोपिक सितम्बर 2021 तक रिलीज़ हो सकती है।
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