Amrita Pritam Biography hindi | Kuan thi Amrita Pritam

हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है, ना जाने कब ये कुंठा हमारे समाज से कब ख़त्म होगी.समय समय पर महिलाओं ने पुरुषों को आईना दिखाया  अमृता प्रीतम Amrita Pritam. इन्होने ने लेखन के क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया. उन्होने अपने लेखन जीवन में लगभग 100 किताबें लिखें जो आज भी काफी मशहूर हैं, अपने जिंदगी के ऊपर भी एक किताब लिखी थी, जिसका नाम उन्होने दिया था रसीदी टिकट. उनकी लिखी हुई कई किताबों का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया. उन्हे साहित्य अकादमी पुरष्कार से सम्मानित किया गया साथ ही भारत सरकार ने उन्हे पद्मविभूषण से भी नवाज़ा था.

कौन थीं अमृता प्रीतम

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अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 में गुजरांवाला पंजाब (अविभाजित भारत) में हुआ था, उनकी माता का देहांत बहुत जल्दी हो गया जब वो सिर्फ 11 साल की थीं. माँ की कमी से घबरा कर शायद वो शायरी और कहानियों का सहारा लिया करतीं थीं। अमृता प्रीतम Amrita Prtiam का बचपन पाकिस्तान लाहौर में बिता उनकी पढ़ाई लिखाई भी वहीं से हुई, उनकी रुचि हमेशा से लेखन में थी जिसकी वजह से उन्होने बहुत छोटी से उम्र से लिखना शुरू कर दिया था,  सिर्फ 16 साल की उम्र में उन्होने अपनी कविताओं का पहल संग्रह “अमृत लहरां” लिख दिया था. उन्हे शुरू से ग़ज़लें कविताएं कहानियाँ निबंध लिखने का शौक रहा.

अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी

अमृता प्रीतम की शादी बहुत कम उम्र में हो गई थी, मगर वो उस शादी से खुश नहीं थीं. वो हमेशा आपने आप को शायरी कहानियों और किताबों में बिखरे के रखा करतीं थीं, उन्हे ख़ुशी इन्ही सब चीजों से मिला करती थी, ऐसे ही ज़िंदगी गुज़र रही थी। की, सन 1944 की एक शाम उनकी ज़िंदगी में कुछ ऐसा हुआ जिससे की उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बादल जाने वाली थी, वो जिस जगह गई हुई थी. उस शाम वहाँ मशहूर शायर साहिर लुधियानवी भी आने वाले थे, वहाँ एक मुशायरा का आयोजन था.

एक अजीब इतेफ़ाक़ ये की अमृता और साहिर की जिस जगह मुलाक़ात हुई, उस शहर का नाम था प्रीतनगर खैर ये महज़ इतेफ़ाक़ की बात थी. एक छोटे से सकरे कमरे में कुछ शायर अपने अपने कलाम एकक दूसरे को सुना रहे थे, मध्धम सी रौशनी थी. अमृता और साहिर की नज़रें एक दूसरे से बार बार टकरा जाती थी, यही वो घड़ी थी जिस समय दोनों के दिल में प्यार की चिगरी उठी थी। अमृता उस समय ये भी भूल गईं की वो पहले से शादी शुदा हैं.

प्यार तो हो गया मगर वो एक दूसरे से मिल नहीं सकते थे क्यों की, उनदिनों अमृता रहती थीं, दिल्ली में और साहिर लाहौर में उनदोनों के बीच दूरियाँ थीं. बहुत मगर फिर इश्क़ इश्क़ है इन दूरियों की कम किया खतों ने वो एक दूसरे को बहुत खत लिखा करते, और उसी के जरिये वो एक दूसरे को महसूस किया करते.

किस हद तक प्यार था अमृता को साहिर से

एक ऐसा भी वक़्त आया जब अमृता साहिर के प्यार में लगभग दीवानी हो गईं थीं, वो उन्हे प्यार से मेरे सनम, मेरे महबूब, मेरे खुदा, मेरे देवता कहकर बुलाया करतीं थीं. अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में उन्होने अपने एहसास को साहिर के लिए जो थे, खूलकर बयान किया है। वो लिखतीं है ‘ जब कभी हम मिलते थे दोनों खामोश रहते थे, बस एक दूसरे को निहारते रहते थे, इन मुलाकातों में साहिर एक के बाद एक लगातार सिगरेट पीते रहते थे. और जब वो चले जाते तो उन सिगरेटों के बचे हुए टुकड़ों को अपनी उँगलियों के बीच रख कर उनको अपने होंठों से लगा लिया करती थीं. और साहिर के एहसास में खो जाया करती थीं, इसी बीच उन्होने अपने पति से तलाक भी ले लिया। और अकेले दिल्ली में रहने लगीं, उन्होने ये ज़िंदगी साहिर की यादों और अपनी कविताओं के सहारे जीने का फैसला कर लिया था.

मगर ये भी एक अजीब बात हुई अमृता के साथ की कभी ना साहिर ने ना ही कभी अमृता ने अपने प्यार का इज़हार खुले तौर पर नहीं किया, इसकी एक वजह ये भी रही की अमृता प्रीतम की दोस्ती एक पेंटर इमरोज से थी, एक बार की बात है सन 1964 मे अमृता मुंबई आईं साहिर से मिलने और वो इमरोज के साथ थीं. किसी और को अमृता के साथ देखकर साहिर अंदर ही अंदर टूट गए। उन्हे ये बर्दाश्त नहीं हुआ और फिर साहिर का दिल एक गायिका सुधा मल्होत्रा पर आ गया.

अमृता और इमरोज़ 

अमृता और इमरोज़ की कहानी बहुत अजीब है, अजीब इसलिए क्योंकि वो साथ रह कर भी कभी एक नहीं हो सके यानि उन्होने अपनी ज़िंदगी के कई साल एक छत के नीचे गुज़ार दिये। मगर उन्होने शादी नहीं की, शादी न होने की वजह रहे साहिर. साहिर से अमृता के प्यार की गहराई को इमरोज़ समझते थे, मगर उन्हे फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि वो प्यार का मतलब जानते थे। वो कहा करते की, भले अमृता साहिर से प्यार करतीं हों मगर मैं तो अमृता से प्यार करता हूँ. किसी ने क्या खूब कहा था, इमरोज़ के लिए की साहिर होना आसान है मुश्किल है इमरोज़ होना.

BBC को दिये एक इंटरविव में इमरोज़ ने कहा था की “अमृता की उंगलियाँ हमेशा कुछ न कुछ लिखती रहती थीं. चाहे उनके हाथ में कलम हो या न हो. उन्होंने कई बार पीछे बैठे हुए मेरी पीठ पर साहिर का नाम लिख दिया. लेकिन फ़र्क क्या पड़ता है. वो उन्हें चाहती हैं तो चाहती हैं. मैं भी उन्हें चाहता हूँ.”

अमृता और पंडित नेहरू

सन 1958 में जब वियतनाम के राष्ट्रपति हो ची मिन्ह अपने भारत दौरे पर थे, उनके सम्मान में पंडित नेहरू ने रात्री भोज का आयोजन किया। उसमें देश के नमी गिरामी लोगों को न्योता दिया गया, जिसमे अमृता प्रीतम का भी नाम था. जब वो वहाँ गईं और उनकी मुलाक़ात हो ची मिन्ह से हुई तब उन्होने अमृता प्रीतम का माथा चूमते हुए कहा था की हम दोनों सिपाही हैं. तुम कलम से लड़ती होमैं तलवार से लड़ता हूँ.” इस घटना का ज़िक्र खुद अमृता प्रीतम ने दूरदर्शन के एक इंटरविव में किया था.

अमृता प्रीतम के उपन्यास जिनका दूसरी भाषाओं में अनुवाद हुआ
उपन्यास अन्य भाषाओं में अनुवाद
डॉक्टर देव (1949)हिन्दी, गुजराती, मलयालम और अंग्रेज़ी
पिंजर (1950)हिन्दी, उर्दू, गुजराती, मलयालम, मराठी, अंग्रेज़ी और सर्बोकरोट
आह्लणा (1952) हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी
आशू (1948) हिन्दी और उर्दू
इक सिनोही (1949) हिन्दी और उर्दू
बुलावा (1960)हिन्दी और उर्दू
बंद दरवाज़ा (1961)हिन्दी, कन्नड़, सिंधी, मराठी और उर्दू
रंग दा पत्ता (1963)हिन्दी और उर्दू
इक सी अनीता (1964)हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू
चक्क नम्बर छत्ती (1964) हिन्दी, अंग्रेजी, सिंधी और उर्दू
धरती सागर ते सीपियाँ (1965)हिन्दी और उर्दू
दिल्ली दियाँ गलियाँ (1968) हिन्दी
एकते एरियल (1969) हिन्दी और अंग्रेज़ी
जलावतन (1970)हिन्दी और अंग्रेज़ी
यात्री (1971)हिन्दी, कन्नड़, अंग्रेज़ी बांग्ला और सर्बोकरोट
जेबकतरे (1971) हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, मलयालम और कन्नड़
अग दा बूटा (1972) हिन्दी, कन्नड़ और अंग्रेज़ी
पक्की हवेली (1972) हिन्दी
अग दी लकीर (1974) हिन्दी
कच्ची सड़क (1975) हिन्दी
कोई नहीं जानदाँ (1975) हिन्दी और अंग्रेज़ी
उनहाँ दी कहानी (1976) हिन्दी और अंग्रेज़ी
इह सच है (1977)हिन्दी,बुल्गारियन और अंग्रेज़ी
दूसरी मंज़िल (1977) हिन्दी और अंग्रेज़ी
तेहरवाँ सूरज (1978)हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी
उनींजा दिन (1979)हिन्दी और अंग्रेज़ी
कोरे कागज़ (1982) हिन्दी
हरदत्त दा ज़िंदगीनामा (1982) हिन्दी और अंग्रेज़ी
अमृता प्रीतम का सम्मान और पुरस्कार

अमृता प्रीतम को कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया उनमे से कुछ राष्ट्रीय और कुछ अंतर्राष्ट्रीय थे जिनमें प्रमुख हैं 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1958 में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कार, 1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार; (अन्तर्राष्ट्रीय) और 1982 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार। वे पहली महिला थीं जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और साथ ही साथ वे पहली पंजाबी महिला थीं जिन्हें 1969 मेंपद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।

  1. साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956)
  2. पद्मश्री (1969)
  3. डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर (दिल्ली युनिवर्सिटी-1973)
  4. डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर (जबलपुर युनिवर्सिटी-1973)
  5. बल्गारिया वैरोव पुरस्कार (बुल्गारिया– 1988)
  6. भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)
  7. डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर (विश्व भारती शांतिनिकेतन-1987)
  8. फ़्रांस सरकार द्वारा सम्मान (1987)
  9. पद्म विभूषण (2004)

 

 

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