Rooh Afza ka Itihaas | Rooh Afza in Hindi

जब बात हो शरबत की तो सबसे पहले जो नाम ज़ेहन में आता है वो है रूह अफज़ा Rooh Afza का और रमज़ान में रोज़े चल रहे हों इफ्तार में अगर शरबत-ए-आज़म रूह अफज़ा ना हो तो फिर ज़रा सी कमी महसूस तो होती ही है दोस्तों आप सोच रहे होंगे की एक शरबत के लिए इतनी बातें क्यों हो रही हैं तो आपको बता दूं की ये सिर्फ शरबत नही है ये एक संस्कृति से जुडी हुई चीज़ है 100 साल से ज्यादा से लोग इस शरबत का मज़ा ले रहे हैं आज इस आर्टिकल से हम जानेंगे की कौन हैं मालिक रूह अफज़ा के इसकी शुरुवात कब हुई थी और इससे जुडी अन्य बातें आइये शुरू करते हैं

कहानी Rooh Afza के बनने की ?

दोस्तों समय था साल 1906 का अभी भारत गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था की दिल्ली में गर्मियों के दिन में अचानक लोग बीमार पड़ने लगे किसी को दस्त, किसी को उल्टियां किसी की बुख़ार ने अपनी चपेट में ले लिया था पूरी दिल्ली में लू और गर्मी से हालत ख़राब हो गई थी.

वहीँ दिल्ली के लाल कुआं इलाके में एक दवाखाना हुआ करता था हमदर्द नाम का जहाँ हाकिम हाफिज अब्दुल माजिद यूनानी हर्बल पद्धति से लोगों का इलाज करते थे उनके पास जब गर्मी के सताए लोग ज्यादा संख्या में आने लगे तब उन्होंने एक दवा बनाई और लोगों को पिलानी शुरू की देखते ही देखते इस दवा का जादुई असर नज़र आने लगा सब थी होने लगे आज जिसे हम लोग रूफ अफज़ा (Rooh Afza) के नाम से जानते हैं ये वही दवा थी रूह अफजा सिर्फ दवा न होकर लोगों को गर्मी से राहत देने का नायाब नुस्खा बन गया और हमदर्द दवाखाना से बड़ी कंपनी बन गई

साल 1907 में सॉफ्ट ड्रिंक रूह अफजा मार्केट में लांच की. शीशे की बोतल में पैक रूह अफजा का लोगो तब मिर्ज़ा नूर मोहम्मद ने बनाया था इसका नाम लखनऊ के पंडित दया शंकर ‘नसीम’ की किताब ‘मसनवी गुलज़ार ए नसीम’ से लिया गया था जिसमे रूह अफजा नाम का एक पात्र था

दवा से शरबत कैसे बन गई रूह अफज़ा ?

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गर्मियों में रमज़ान का महिना पड़ा लोग दिन भर रोज़ा रहते प्यास के मारे उनका गला सूख जाता था और बीमारी का ख़तरा अलग से था तो लोग जाते हाकिम अब्दिल माजिद के पास और रूह Rooh Afza ले कर आते इफ्तार में इसको पीते इस तरह ये मुस्लिम समुदाय में ज्यादा मशहूर हो गया और दवा से ये शरबत बन गई आज जैसे इसकी बोतल प्लास्टिक या कांच की मिलती है पहले ऐसा नहीं था इसको लाने के लिए आपको अपने घर से बर्तन लेजाने होते थे हमदर्द दवाखाना तक

भारत से पाकिस्तान का सफ़र रूह अफज़ा का ?

कई सालों तक भारत मे लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा जादू रूह अफज़ा Rooh Afza का मगर साल 1947 में देश का बंटवारा हो गया और हाकिम हाफिज अब्दुल माजिद के एक बेटे हकीम अब्दुल सईद पाकिस्तान चले गए और वहां जा कर उन्होंने रूह अफज़ा बनाना शुरू कर दिया

चूँकि बंटवारे के पहले तो देश एक था तो वहां के लोग भी रूह अफज़ा के स्वाद से वाकिफ थे ही उन्हें अब पाकिस्तान में भी इसका स्वाद मिलने लगा था इस तरह भारत से पाकिस्तान तक रूह अफज़ा का सफ़र तय हुआ

फिर साल 1971 में पाकिस्तान के दो हिस्से हो गए एक पाकिस्तान और दूसरा बांग्लादेश तब हकीम अब्दुल सईद ने अपना कारोबार समेटने की बजाए वहां काम करने वाले लोगों को ही रूह अफज़ा सौंप दिया अब भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी रूह अफज़ा का निर्माण होता है

हमदर्द के और क्या क्या प्रोडक्ट हैं ?

1948 से हमदर्द कंपनी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रूह अफजा Rooh Afza का उत्पादन कर रही हैं. रूह अफजा के अलावा कंपनी के जाने-माने उत्पादों में साफी, बादाम शिरीन और पचनौल जैसे उत्पाद शामिल हैं

भारत में कहाँ कहाँ बनती है रूह अफज़ा ?

शुरुआती दौर में प्रोडक्शन सीमित मात्रा में होता था. फिर कंपनी ने 1940 में पुरानी दिल्ली में, 1971 में गाजियाबाद और 2014 में गुरूग्राम के मानेसर में प्लांट लगाया. अकेले इसी प्लांट से रोजाना हजार बोतल Rooh Afza का उत्पादन होता है

क्या है विवाद रूह अफज़ा को लेकर ?

हाकिम हाफिज अब्दुल माजिद जिन्होंने रूह अफज़ा Rooh Afza का इजाद (अविष्कार) किया उनके दो बेटे थे अब्दुल हामिद और मुहोम्मद सईद साल 1920 में हमदर्द दवाख़ाना कंपनी का गठन हुआ इस दौरान हाकिम हाफ़िज़ अब्दुल माजिद का निधन हो गया था फिर एक हादसा ये हुआ की भारत के विभाजन हुआ साल 1947 में और इस तरह हमदर्द का भी दो हिस्सों में बटवारा हो गया क्योंकि मुहोम्मद सईद पाकिस्तान चले गए बड़े बेटे अब्दुल हामिद भारत में ही रह गए अपनी माँ के साथ और वहां उन्होंने रूह अफज़ा का उत्पादन शुरू कर दिया

अब्दुल हामिद के दो बेटे हुए अब्दुल मोईद और हम्माद अहमद साल 1948 में हमदर कंपनी को चैरिटेबल बना दिया गया और इसके प्रबंधन का काम अब्दुल मोईद के ज़िम्मे आया और हम्माद अहमद इसकी मार्केटिंग का काम सँभालने लगे 1948 की वक्फ डीड थी, लेकिन 1973 में एक संशोधन कर दिया और बड़े बेटे अब्दुल मोईद को चीफ मुतवल्ली बना दिया, जो वक्फ का फाइनेंस, अकाउंट, प्रोडक्शन सब कुछ देखने लगे. उन्होंने अपने बेटे अब्दुल माजिद को मुतवल्ली बना दिया. इस तरह बोर्ड में अब्दुल मोईद की एंट्री हो गई. हम्माद ने भी अपने बेटे हमीद अहमद को बोर्ड में शामिल करा दिया. 2015 में अब्दुल मोईद के निधन के बाद बोर्ड की बागडोर अब्दुल माजिद ने सभाल ली. जिस पर हम्माद अहमद का विवाद शुरू हो गया. 2017 में हम्माद अहमद ने इसको लेकर हाईकोर्ट में केस कर दिया. जिस पर कोर्ट ने हम्माद के पक्ष में फैसला सुनाया

रमज़ान और रूह अफ़ज़ा

दोस्तों एक बात यहाँ साफ कर देनी बहुत ज़रूरी है की रूह अफज़ा Rooh Afza का रमज़ान में ज्यादा इस्तेमाल होने का कोई धार्मिक कारण नहीं है जब जब रमज़ान का महिना गर्मियों में पड़ता है तब तब रूह अफज़ा की मांग बढ़ जाती है हर मुस्लिम घर में रूह अफज़ा का मिलना एक आम बात ही रोज़े के दिनों में

जब से रूह अफ़ज़ा मिलना शुरु हुआ है तब से आज तक उसके स्वाद में कोई भी फर्क नहीं आया है पीढ़ियों से लोग इस शरबत के राजा का स्वाद ले रहे हैं अपनी क्वालिटी में कूई समझौता नहीं किया हमदर्द ने इस लिए ये लोगों की ज़बान पर आज तक बना हुआ है

क्या क्या चीज़ों से मिलकर बनता है रूह अफज़ा

लाल रंग ग्लास में और रूह अफज़ा Rooh Afza की खुशबु पुरे माहौल में एक अलग ही ताज़गी ले आती है इसको बाबाने में भी कोई खास मेहनत नहीं करनी होती बस शीशी से अपने स्वाद के हिसाब से रूह अफज़ा निकालिए और ठंडे पानी में घोलिये ज़रा सी शक्कर के साथ और लीजिये स्वाद इस लाजवाब शरबत का

दोस्तों मेरे दिमाग में एक बात आती है और शायद आप भी ये सोचते होंगे की आखिर ऐसी क्या चीज़ मिली जाती है रूह अफज़ा में की इस का स्वाद आज तक नहीं बदला और इसकी दीवानगी अभी भी सालों बाद भी कायम है

इसमें बहुत सारी जड़ी बूटियाँ, फल फूल होती है जैसे – पीसलेन, चिक्सर, अंगूर-किशमिश, यूरोपीय सफेद लिली, ब्लू स्टार वॉटर लिली, कम, बोरेज, धनिया जैसी जड़ी-बूटियां होती हैं तो फलों में नारंगी, नींबू, सेबस जामुनस स्ट्रॉबेरी, रास्पबेरी, चेरी और तरबूज जैसे फल का इस्तेमाल होता है.जबकि सब्जियों में पालक, गाजर, टकसाल, माफी हफ्गें और फूलों में गुलाब,केवड़ा डाला जाता है. एक खास किस्म की जड़ी वेटिवर भी इसके सिरप में डलती है. और इसकी कीमत भी बहुत वाजिब है सिर्फ 180 रूपए में आपको 750 ML की बोतल मिल जाएगी

Rooh Afza से सम्बंधित अन्य सवाल

रूह अफज़ा के मालिक का नाम क्या है ?

Rooh Afza के मालिक का नाम हाकिम हाफिज अब्दुल माजिद है

रूह अफज़ा की शुरुवात कब हुई थी ?

रूह अफज़ा की शुरुवात साल 1906 में दिल्ली में हुई थी

रूह अफज़ा की कितनी कीमत है ?

सिर्फ 180 रूपए में आपको 750 ML की बोतल मिल जाएगी

दोस्तों आज हमने hindeeka में बात की है, Rooh Afza शरबत की इसके इतहास और इसके बनने की कहानी की, हमें उम्मीद है की आपको आपके सरे सवालों के जवाब Rooh Afza से संबंधित हम दे सके होंगे फिर भी कोई कमी रह गयी हो तो हमें ज़रूर अवगत करवाएं!

कैसी लगी आपको हमारी ये जानकारी अगर आपके पास हमारे लिए कोई सुझाव है तो हमें ज़रूर कमेंट करके बताएं !आप अगर लिखना चाहते हैं हमारे ब्लॉग पर तो आपका स्वागत है

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